Tell the leaders how will the promises be fulfilled?
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नेता बताएं वादे पूरे करेंगे कैसे?

नेता बताएं वादे पूरे करेंगे कैसे?

Tell the leaders how will the promises be fulfilled?

आखिर सत्ता में आने के महत्वाकांक्षी राजनेताओं को सरकारी पैसे के बूते अपने चुनावी वादों को पूरा करने की छूट कैसे हासिल हो रही है, अगर पांच साल पहले सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस की ओर से चुनाव में मुफ्त बांटने की 'वायदा राजनीति' पर अंकुश लगाने की जरूरत समझ ली गई थी तो उसी समय क्यों नहीं इस पर कार्रवाई हो गई? अब जब पांच राज्यों के विधानसभा हो रहे हैं, तो सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार एवं चुनाव आयोग को नोटिस जारी करके पूछा है कि सरकारी खजाने से नकद और मुफ्त उपहारों का वादा करने वाले राजनीतिक दलों का चुनाव चिन्ह जब्त करने और ऐसे दलों की मान्यता को क्यों न रद्द कर दिया जाए। यह नोटिस उस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए जारी किया गया है, जिसमें ऐसे राजनीतिक दलों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की गई है। दरअसल, मौजूदा समय में इसकी व्यापक जरूरत है कि राजनीतिक दलों की ओर से घोषणाओं के गुब्बारों पर अंकुश लगाया जाए। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान ऐसी घोषणाएं की जा रही हैं, जिनको पूरा किया जाना असंभव है, बावजूद इसके राजनेता लुभावने वादे कर रहे हैं।

राजनीतिक दल विदेश के खजाने में पड़े काले धन को वापस भारत लाने से लेकर मुफ्त बिजली, पानी, परिवहन, रसोई गैस, लैपटॉप, फोन, साइकिल, पेंशन देने समेत तमाम ऐसे वादे करते हैं, जिन्हें वे बेशक सत्ता में आने के बाद पूरा कर भी दें लेकिन इस दौरान जनता को लुभाने के लिए किए गए इन वादों पर जनता के टैक्स का जो पैसा खर्च होता है, वह दूसरे विकास कार्यों पर नहीं लग पाता। प्रश्न यह भी है कि मुफ्त वादों, घोषणाओं के शोर में वे मुद्दे जिन्हें वास्तव में हल किए जाने की जरूरत है, पर राजनीतिक दलों का स्टैंड साफ ही नहीं हो पाता। पार्टियां सिर्फ अपने लक्षित मतदाता को लुभाकर अपना मंतव्य पूरा कर ले जाती हैं। इस बीच दूसरे वादे अधूरे ही रह जाते हैं।  वर्ष 2017 में तत्कालीन चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने कहा था, चुनावी वादों के लगातार अधूरे रहने की वजह से राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र महज कागज का टुकड़ा बनकर रह गए हैं। उन्होंने आगे कहा था, राजनीतिक दलों को हर हाल में अपने चुनावी घोषणा पत्रों के प्रति जवाबदेह होना चाहिए। उनकी यह भी राय थी कि चुनावी वादे पूरा न होने पर राजनीतिक दल बड़ा अजीब तर्क देते हैं कि उनके पार्टी सदस्यों के बीच इस बारे में सहमति नहीं बन पाई। उन्होंने वर्ष 2014 के आम चुनाव के घोषणा पत्रों पर कहा था, एक भी राजनीतिक दल ने आर्थिक सुधार और वंचित तबके के लिए सामाजिक-आर्थिक न्याय सुनिश्चित कराने के लिए संवैधानिक लक्ष्य के बीच किसी तरह के जुड़ाव का जिक्र नहीं किया है।

2013 में भी सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों की ओर से चुनाव पूर्व की जाने वाली मुफ्त घोषणाओं के संबंध में चुनाव आयोग को गाइडलाइंस बनाने के लिए कहा था, इसके बाद आयोग ने सभी राजनीतिक दलों की बैठक भी बुलाई थी, लेकिन ज्यादातर राजनीतिक दल इसके लिए सहमत नहीं हुए, क्योंकि इससे उनके हितों को नुकसान पहुंच रहा था। इसके  बावजूद चुनाव आयोग ने अपने कर्तव्य को पूरा करने का क्रम जारी रखा और वर्ष 2015 में निर्देश जारी किए कि राजनीतिक दलों को यह बताना होगा कि उनकी ओर से घोषणा पत्र में किए जाने वाले वादों को किस तरीके से पूरा किया जाएगा। इसकी निगरानी के लिए एक कमेटी का गठन किया गया, लेकिन यह भी सिर्फ खानापूर्ति ही साबित हुई। ऐसे में यह माना जा सकता है कि किसी भी राजनीतिक दल की चाहे वह सत्ता में बैठा है या फिर विपक्ष में है, जनता को लुभाने के अपने हथकंडों को नियंत्रित कराने की मंशा नहीं है। दरअसल, अब सुप्रीम कोर्ट की ओर से नए सिरे से नोटिस जारी किए जाने के बाद यह मामला फिर चर्चा में आ गया है। अदालत ने स्वयं कहा है कि यह गंभीर मुद्दा है, कई बार मुफ्त उपहारों की घोषणा का बजट नियमित बजट से ज्यादा हो जाता है।

पंजाब के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने ऐसी घोषणाएं की हैं, जिनको पूरा किया जाना बेहद मुश्किल है। पार्टी ने 18 वर्ष से अधिक उम्र की प्रत्येक महिला को 1 हजार रुपये की हर महीने देने की घोषणा की है। इसके मुकाबले शिरोमणि अकाली दल ने भी 2 हजार रुपये प्रति माह का ऐलान कर दिया है। वहीं कांग्रेस भी कैसे पीछे रह सकती थी, पार्टी ने फिर सत्ता में आने पर प्रत्येक गृहिणी को 2 हजार रुपये प्रतिमाह और साल में 8 गैस सिलेंडर मुफ्त देने का वादा कर दिया है। इसके अलावा प्रत्येक लडक़ी को स्कूटी दी जाएगी। वहीं लड़कियों के 12वीं पास करने के बाद 20हजार रुपये, 10वीं पास करने पर 15 हजार रुपये, 8वीं पास करने पर 10 हजार रुपये और 5वीं पास करने पर 5 हजार रुपये दिए जाएंगे।  पंजाब में इस समय सरकारी कर्मचारियों को समय पर वेतन-भत्ते तक नहीं मिल रहे हैं, बीते वर्ष अक्तूबर में विधानसभा सत्र के दौरान वित्त मंत्री मनप्रीत बादल ने सदन में ब्योरा दिया था कि पंजाब पर 2.82 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। वर्ष 2017 में जिस समय कांग्रेस सत्ता में आई, तब प्रदेश पर 1.82 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था, जोकि अकाली-भाजपा सरकार से उसे विरासत में मिला था। दरअसल, राजनीतिक दलों को ऐसी घोषणाएं करने से पहले उनको पूरा किए जाने का रोडमैप भी चुनाव आयोग को बताना चाहिए। अब वह समय आ गया है, कि राजनीतिक दल अपने वादों के एवज में बताएं कि आखिर उन्हें पूरा कैसे करेंगे।